मौलिक
जैसे ही यशोधरा नींद से जागी। उसने देखा कि सिद्धार्थ घर से चले गये है। इससे पहले भी उसे सिद्धार्थ की अंतरात्मा की आवाज का कुछ ज्ञान था। वही अंतरात्मा की आवाज,सिद्धार्थ का चरम जीवन लक्ष्य था |
यशोधरा को इस बात का दुःख तो था, की सिद्धार्थ उसे छोड़कर चले गए, लेकिन इस बात का गर्व भी था की सिद्धार्थ एक महान कार्य करने के लिये गए हैं। मानवता का कार्य करने के लिए गये है| लेकीन बिना बताये चले गये थे|यह बात उसे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी | उसकी और उसके सखी की बात से यह स्पष्ट होता है|
सिद्धी हेतू स्वामी गये ये है गौरव की बात
पर चोरी चोरी गये यही बडा व्याघात
सखी वो मुझसे कहकर जाते
क्या हुआ मुझे अपनी पथबाधा पाते
सिद्धार्थ ने जाते समय कुछ नही बताया यह बात यशोधरा सह नहीं पायी थी।
ढाई हजार साल पहले, मानव इतिहास में मानव विकास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण चरण हुआ। सिद्धार्थ ने गौतम बुद्ध बनने के लिए जो दूरी तय की थी| दूरी सम्पूर्ण मानव इतिहास में एक मील का पत्थर था और है। मील का पत्थर इसलिए की, ऐसा क्रांतिकारी और महान कार्य जिसके उपरांत मानव जाति अब वह न रही जो पहले थी।
गौतम बुद्ध ने धर्म को वैज्ञानिक बनाया। वह निरपेक्षता जो एक मनुष्य किसी वस्तु के लिए रख सकता है ,या उस वस्तु को निरपेक्षता के साथ देख सकता है। मनुष्य को स्वयं को उसी निरपेक्ष, तटस्थ और साक्षी भाव से देखना चाहिए। यह दुख को कम करने का एक तरीका हो सकता है। गौतम बुद्ध ने इस मार्ग का निर्माण किया।
गौतम बुद्ध कहते हैं कि मनुष्य के भीतर एक प्रकाश है।(आंतरिक प्रकाश) है। पर मैं जो कहता हूं ,उस पर विश्वास रखने की जरूरत नही है|तुम सब अपने भीतर जाचो, इसलिए मैं तुम्हें अपने भीतर के प्रकाश को देखने का मार्ग बताता हूँ। चलो उस तरफ चलते हैं |यदि तुम अपने भीतर का प्रकाश देखते हो, तो सत्य को स्वीकार करो। अन्यथा, सिर्फ मेरी बात सुनने और विश्वास रखने से कुछ नही होगा ।
इसके लिए कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। इसलिए यदि आप अपने (आंतरिक जगत) में प्रवेश करें तो यह ऐसी चीज़ है जिसे आप देख सकते हैं।
यह मार्ग जो प्रकाश की दिशा में, अर्थात् जागरूकता की दिशा में यात्रा करता है, यह भगवान बुद्ध द्वारा सबके सामने लाया गया था। यह स्वयं चिकित्सक बनने, अपनी अंतर्दृष्टि विकसित करने और मानवता के अंतिम लक्ष्य तक पहुंचने का मार्ग है।
मानव का अंतिम गंतव्य अथवा तो अंतिम लक्ष तक पहुंचने का रास्ता है। तो इसका पहला चरण कौन सा है? यह कोई बाह्य मंत्र नहीं है। इसमें कोई तकनीक नहीं है|
हम जो लेते रहते हैं वही अपनी सांस है। वैज्ञानिक दृष्टि से कहें तो बौद्धों के पास धर्म की विज्ञान जैसी अवधारणा है।भगवान गौतम बुद्ध ने धर्म के लिए वैज्ञानिक परिकल्पनाओ की एक विधि विकसित की।
क्योंकि मानव जीवन की यात्रा मानने से लेकर जानने तक की है।
जानना ही समझ है| जानने से आत्मविश्वास बढ़ता है |क्योंकि जानना ही जांचना है|इसका मतलब यह है कि जानने से ,समझने सेअंधविश्वास की संभावना खत्म हो जाती है। इसलिए, प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि विकसित होनी चाहिए, जिसके माध्यम से वे अपनी संरचना और अपनी तकनीकों को समझ सकें। नासमझी ही कारण है मानव जीवन को दुःखी बनाने के लिए । दुःख देने वाले कारणों को तटस्थ दृष्टिकोण से देखने में सक्षम होना, बनना।
इसके पीछे बुद्ध का हर मनुष्य को स्वयं का चिकित्सक बनाने का तरीका था। यह मार्ग मौलिक था। आज भी है|
गौतम बुद्ध दूरदर्शी नहीं बल्कि द्रष्टा हैं। दर्शन कैसे प्रकट हुआ, इस पर विचार करके प्रस्तुत किया जाता है। अतः द्रष्टा होने का अर्थ है प्रत्यक्षतः देखना।
क्योंकि सोचने और प्रस्तुत करने से दृष्टि नहीं मिलती। देखने से दृष्टि मिलती है| इसके अलावा, केवल विचार ज्ञात हैं।
ज्ञात चीजें घटित हो सकती हैं। अज्ञात यदि आप जानना चाहते हैं| तो यह केवल दृष्टि विकसित करके ही संभव है।
विचार सबसे सूक्ष्म होते हैं। हम जब जड़ता में जीते हैं, तो हमारी लिए अपने विचारों को समझना बहुत कठिन हो जाता है।
मूलतः हम जीवन जीते समय , मेरा वास्तविक विचार क्या है? यह जब सोचते है |तो मुझे पता चलता है की मेरे सारे विचार दूसरों से उधार लिये गये हैं। इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
विचार निरंतर बदलते रहते हैं| विचार अवसरवादी होते हैं ,और कभी-कभी हमे अज्ञानता से पाखंड की ओर ले जाते हैं।
एक बार मुल्ला नसरुद्दीन अपना घोड़ा एक जगह बांधता है, और सामान लेने दुकान पर जाता है। जब बाहर आकर देखता है ,तो क्या ? किसी ने उसके घोड़े को लाल रंग से रंग दिया है।इसपर मुल्ला नसरुद्दीन बहुत क्रोधित हो जाता है। पूछताछ के बाद उसे पता चलता है। यह कृत्य सामने की शराब की दुकान पर बैठे किसी व्यक्ति ने किया। ठीक वैसे ही, मुल्ला तडाक से दुकान पर जाता है। और ऊंची आवाज में बोलता है। किसी ने मेरे घोड़े को लाल रंग से रंग दिया है। मैं तब तक नहीं जाऊंगा, जब तक मैं घोडे को रंग ने वाले की हड्डि पसलियां एक न कर दू | सच बताओ, इसे किसने किया यह सब ? इस पर साढ़े छह फुट लंबा एक पहलवान खड़ा हो जाता है। मुल्ला नसरुद्दीन को तब एहसास होता है, “ओह, अपनी हड्डियों और पसलियों को बचाना उसे मारने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।”
तो मुल्ला पहलवान से कहता है, “नहीं, मैं तुम्हें यह बताने आया था ,कि तुमने मेरे घोड़े को जो लाल रंग दिया था वह अब सूख गया है।” आप उस पर दोबारा कब रंग देंगे?
ऐसे विचार हैं। अवसरवादी|
इसलिये भगवान बुद्ध कहते हैं। पारंपरिकता को पीछे छोड़िए और अपनी दृष्टि में मौलिकता को अपनाइए। क्योंकि परंपरावाद हमें अतीत में जीने के लिए मजबूर करता है। इसलिए अपना दृष्टिकोन वर्तमान काल में रखें। जो सकारात्मक भविष्य की ओर देखने का आत्मविश्वास देता है।
यदि विचारों को स्वीकार कर लिया जाए ,तो दृष्टि विकसित नहीं हो सकती। क्योंकि विचारों का बोझ से हम अपने अंदर नही देख पाते| ऐसे देखने की शक्ति (आंतरिक परिदृश्य) पैदा नहीं की जा सकती।
तो दूरदर्शी बनो
अत्त दीप भव!
(स्वयम दीप बनो)
भगवान बुद्ध कहते है तुम्हारे केवल मानने से तुम्हारे भीतर का दिपक नहीं जला सकेगा। यह आपके भीतर पहले से ही मौजूद है। मेरे साथ आओ और देखो कि वह दिपक जल रहा है, या नहीं।
लेकिन दृष्टि को प्राप्त करना उतना आसान नहीं है| जितना विचार को लागू करना। यदि आप दृष्टि प्राप्त करना चाहते हैं ,तो आपको अपना चिकित्सक बनना होगा। इसलिए, दृष्टि को बाधित करना होगा। तुम्हें भी कष्ट भोगना पड़ेगा। यही कारण है कि हम सब अब तक इससे बचते रहे हैं।
लेकिन हमें अपना आंतरिक प्रकाश खोजना होगा, जो मानवता का अंतिम लक्ष्य है।
भगवान बुद्ध ने मानव जीवन को सुखी करने के लिए कुछ सार्वभौमिक तत्व निर्धारित किये हैं।
सबसे पहले, अपने विवेक पर भरोसा रखें।
सम्पूर्ण अस्तित्व कर्म के फल पर निर्भर है। तब जन्म के आधार पर कोई श्रेष्ठता या हीनता नहीं रह सकती।
गौतम बुद्ध आगे कहते हैं कि मानव जीवन में तीन प्रकार के दुख होते हैं: जरा, मृत्यु और रोग।
जरा का अर्थ है जन्म, मृत्यु का अर्थ है शरीर की मृत्यु, और रोग का अर्थ है बीमारी। इस पर उन्होंने कारण और परिणाम का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
बेशक, यदि आप कर्म करेंगे तो परिणाम भी मिलेंगे। और अगर आपको परिणाम मिल रहे हैं, तो आपका कर्म होगा ही।”
इसे कारण एवं परिणाम का सिद्धांत कहा जाता है। यानी कारण और परिणाम की एक श्रृंखला है। यदि परिणाम नही चाहते हो तो उनके कारणो को समाप्त करना होगा।
इसके लिए उन्होंने बारह निदान दिए हैं।
उन्होंने हमें मानव जीवन में दुख कम करने के लिए चार काम करने की शिक्षा दी है।
आनंदी रहो|
जो आपसे आगे है, जो आपसे ऊंचे पद पर पहुंचे है, उससे ईर्ष्या मत कीजिए। तुम भी मुझसे ऊंचे स्थान पर पहुंच ना चाहते हो। और जो व्यक्ति ऐसे स्थान पर है | सफलता और प्रसिद्धि प्राप्त करता है। तो उसे मार्गदर्शन लो ,यह तुम्हें कैसे मिला? मैं इस विषय पर आपका मार्गदर्शन चाहता हूं |ऐसे मार्गदर्शन ग्रहण करो |
जो लोग आपसे कमज़ोर हैं उनसे घृणा मत करो। जो लोग पतीत हैं। उनकी स्थिति सुधारने में उनकी सहायता करो|
जो लोग बुरे हैं उनसे न लड़ो और न ही उनसे मित्रता करो। एक निश्चित दूरी बनाए रखो |जीवन को निराशा के साथ मत जियो। दुःख का सबसे बड़ा कारण निराशा है। इसलिए सकारात्मक बने रहो| दुःख की अत्यंत निवृत्ती ही निर्वाण है।
इसके लिए गौतम बुद्ध ने अष्टांग (संतुलित जीवन के लिए 8 मार्ग) मार्ग बताया है, जो सर्वविदित है। सम्यक् दृष्टि, सम्यक् वाचन, सम्यक् स्मृति, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका, सम्यक् मन, सम्यक् समाधि।
और हां! गौतम बुद्ध उन लोगों को अपने पास बुला रहे हैं जो अज्ञानी हैं |अंधेरे में है, या ज्ञान से अनभिज्ञ हैं| और फिर भी जिनको प्रकाश पाने की आस है।(आंतरिक प्रकाश) देखने की इच्छा है।
मैं स्वयंभी इस बात से सहमत हूं कि, आज हर कोई व्यक्ती जो जीवित है। आत्मज्ञान पाना चाहता है ,ऐसे नही|
लेकिन जीवन जीते हुए भी। मेरा जन्म यहाँ क्यों हुआ?
(अर्थ)अब जन्म के बाद मुझे क्या करना चाहिए? बेशक, मेरे जन्म का उद्देश्य क्या है? मेरा स्वभाव क्या है? इस सबका सार यही है कि मैं क्या चाहता हूँ? इसे समझने के लिए प्रत्येक को अपने भीतर गहराई में जाना होगा। तभी जीवन जिया जा सकता है। अन्यथा बस सिर्फ जिंदा तो है ही|
वस्तुतः बौद्ध परम्परा बहुत विशाल एवं विकसित है। गौतम बुद्ध, जो वास्तव में ज्ञानी थे, से पहले कुल 27 बुद्ध हुए थे।
उससे पहले हम सभी को चीनी यात्री युआन सांग और फाह्यान को धन्यवाद देना चाहिए। क्योंकि उनके कारण ही हम सभी को बौद्ध परम्पराओं और बौद्ध साहित्य के साथ-साथ बौद्धों द्वारा किए गए कार्यों के बारे में जानकारी मिली।
गौतम बुद्ध 28वें बुद्ध थे, फिर 27वें, फिर 26वें, और इसी प्रकार आगे बढ़ते गए। बाईसवें बुद्ध, विपश्यना बुद्ध ने दुनिया को विपश्यना योग का मार्ग दिया। इसके अलावा प्रथम बौद्ध तन्हाकर, द्वितीय मेधांकर तथा तृतीय सरण्हाकर का काल मोहनजोदड़ो या हड़प्पा सभ्यता का काल है। आज भी अजंता और एलोरा की गुफाओं में 21 से 28 बुद्ध प्रतिमाएं स्थापित हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा अपने-अपने समय में किया गया कार्य इतना मूल्यवान था कि आज उसकी गहराई इतनी स्पष्ट दिखाई देती है।
छह साल तक ज्ञान प्राप्त करने के बाद। गौतम बुद्ध के पिता राजा शुद्धोधन बुद्ध के पास जाने वाले कई लोगों को संदेश देते थे। की तथागत अर्थात सिद्धार्थ अर्थात भगवान बुद्ध को अपने राज्य में आने के लिए कहो, उनसे मुझसे मिलने के लिए कहो। लेकिन जो भी संदेश लेकर जाता, वह बुद्धमय ही हो जाता |
अंततः राजा शुद्धोधन ने गौतम बुद्ध के पिता ने भगवान बुद्ध के मित्र छैना को भेजा और कहा कि वहां जाने के बाद तुम्ही बुद्ध बन जाओगे, उससे पूर्व सिद्धार्थ को मेरा संदेश देकर अपने राज्य मे आने के लिए न्योता दे देना|
कुछ दिनों के बाद तथागत कपिलवस्तु नगरी में आते हैं। उनके पिता से मिलने आये है। और फिर गौतम बुद्ध पूछते हैं कि यशोधरा कहां है? राजा शुद्धोधन कहते हैं कि वह अपने कक्ष मे है ।
सिद्धार्थ मुझे बिना बताए चले गये, उसे मुझ पर भरोसा नहीं था कि मैं उन्हे जाने नाही दूंगी, इन सारी बातो की चुभन अभी भी यशोधरा के मन मे थी |
यशोधरा को हमेशा लगता था कि यदि मैं महत्वपूर्ण हूं, तो सिद्धार्थ मुझसे मिलने आयेंगे और सिद्धार्थ गौतम बुद्ध यशोधरा के कक्ष के बाहर पधारे के , और सिर्फ “भिक्षाम देहि” कहते हैं। यशोधरा छोटे राहुल का हाथ पकड़कर गौतम बुद्ध को राहुल अर्थात उनके बेटे को भिक्षा के रूप में भगवान बुद्ध को देती है।
और कहा जैसे आप बने वैसे ही अपने बेटे को बनाइये और इसे भी अपने जीवन के दुखोसे मुक्ति दिलाइये ।
धन्य हैं वे जीवन। और उनका त्याग और वैराग्य |
||माऊली के चरणो मे अर्पण||
अश्विनी गावंडे
खूप छान माहिती….गौतम बुद्ध पूर्णपणे सध्या शब्दात समजले…..
खूप छान लिहिले आहेस नेहमी प्रमाणे अप्रतिम लेख
खूप छान आहे नेहमीच छान लेख आहे thanks मुलांना फार उपयोगी आहे