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पवनसुत

स्टीफन कोवे की एक विश्व प्रसिद्ध पुस्तक है, सेव्हन Habits of Highly Effective People, जिसमें एक कहानी है। एक युद्धपोत का कप्तान अपने सामने खड़े जहाज (जिसे वह एक अन्य जहाज समझता है) से दिखाई देने वाली रोशनी से कहता है, “अपने जहाज की दिशा 20 प्रतिशत बदल दो।” सामने वाला व्यक्ति मना कर देता है ।

इस युद्धपोत का कप्तान एक उच्च पदस्थ अधिकारी है। दूसरे व्यक्ति से ‘नहीं’ का उत्तर सुनकर वह पूछता है, “क्या आप जानते हैं कि आप किससे बात कर रहे है ?” मैं लड़ाकू विमान के सर्वोच्च स्तर के कैप्टन बात कर रहा हूं।  सामने से बात करने वाला आदमी कहता है, “सर, मैं द्वितीय श्रेणी का नाविक होने के नाते बोल रहा हूँ।”  मैं आपको बता रहा हूं कि मैं अपनी दिशा नहीं बदल सकता।

यह सुनने के बाद भी नहीं कि सामने से आदेश कौन दे रहा है? सामने खड़ा दूसरे दर्जे का नाविक कहता है, “सर, मैं लाइटहाउस से बोल रहा हूं।” कप्तान तुरन्त नोटिस कर लेता है और उस व्यक्ति से कहते हैं, “ठीक है।” फिर मैं अपनी दिशा बदल देता हूं।

कहने का तात्पर्य यह है कि, लाईट हाऊस  एक मार्गदर्शक है। यह केवल सही रास्ता दिखाने के लिए है। हम सभी के जीवन में लाईट हाऊस हमारे गुरु है।

जो गुरु की बात सुनता है, वही सही मार्ग पर चलता है।

पवनसुत हनुमान हम सबके गुरु हैं। भारत के हर बच्चे के लिए हनुमान एक सुपरहीरो की तरह हैं बचपन से। उनकी अपनी कहानियाँ हैं, अपनी कविताएँ हैं, अपने कारनामे हैं, अपने कार्टून हैं, आदि आदि। तब प्रश्न उठता है। तो फिर 5000 साल बाद भी हम हनुमान की कहानियाँ क्यों सुनते हैं?

लेकिन दुर्भाग्यवश हमारा समाज और हम स्वयं छोटे बच्चे ही बने  रहे। समझने के अर्थ में। हम सभीछोटी-छोटी कहानियों के इर्द-गिर्द योजनाएँ बनाते रहे। ना हमने कहानी का सार निकाला|ना हमे कहानी का सार समझ  आया। हमने इससे कुछ नहीं सीखा. यदि कोई पूछने के लिए मजबूर करता है, तो हम कहते है, “बस विश्वास करो।” जो कब अंधविश्वास में तब्दील हो गया पता ही नही चला।

अंततः, हम अपने दैनिक व्यावहारिक जीवन में तनाव, भय, चिंता जैसी स्थितियों से निपटने और नकारात्मक भावनाओं से छुटकारा पाने के लिए इस वायु पुत्र का उपयोग करते रहे ।

यह घटना संत तुलसीदास के समय की है। उनकी भक्ती,उनका विश्वास और धार्मिकता समाज के लिए बहुत उपयोगी थी। परिणामस्वरूप, समाज में उनका प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। बादशाह अकबर इन सब बातों से थोड़ा नाराज चल रहे थे। एक दिन उन्होंने संत तुलसीदास को जबरदस्ती बुलाया। और कहा हमेशा भगवान का नाम जपते रहते हो|कैसे हो मै वही करता हु जो मेरे भगवान की  आज्ञा है|   अब आओ, मुझे अपने भगवान का चमत्कार दिखाओ। जब तुलसीदास ने मना कर दिया तो उन्होंने संत तुलसीदास को बंदी बनाकर फ़तेहपुर सीकरी में रख दिया।

अपने कारावास के अगले चालीस दिनों तक संत तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की प्रतिदिन एक चौपाई लिखी। हनुमान ने चालीसा की रचना की। जैसे ही तुलसीदास की चालीसवीं चौपाई पूरी हुई। बस कीसी तरह जंगल से पूरी वानर सेना फतेहपुर सीकरी पर उतर आई। इस बन्दर सेना ने फतेहपुर सीकरी में हलचल मचा दी थी। यह अवर्णनीय है| कई उपाय किए गए, लेकिन स्थिति पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका। अंततः बादशाह अकबर ने संत तुलसीदास के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और अब आगे क्या करना चाहिए?  बादशहा अकबर संत तुलसीदास से मार्गदर्शन की प्रार्थना करने लगा। इस पर संत तुलसीदास ने कहा, “हे सम्राट, अब फतेहपुर सीकरी छोड़ दीजिए और आगे यहां कभी पैर मत रखना।”

चालीसा लिखने मात्र से क्या हुआ? ये  हनुमान कौन हैं ?जिनमें इतनी शक्ति और इतनी विशेषताएं हैं? वह किसका भक्त है? इसीलिए उसके पास इतनी शक्ति है। यह सोचने लायक बात थी।

सामान्यतः हम यह भी जानते हैं कि हनुमान श्री राम के भक्त हैं। हम  यह भी जानते है । संत कबीर भी श्री राम के भक्त थे। उनसे भी एक बार यह प्रश्न पूछा गया था कि, “आप किस राम के भक्त हैं?” तब कबीर ने अपनी बात एक दोहे में कही।

एक राम दशरथ का बेटा

दुजा राम घटघट मे बैठा

तिजा राम जगत पसारा

चौथा राम जगत से न्यारा ||

दशरथ पुत्र यानि हमारी कहानी के राम, वाल्मीकि, या संत तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण के आदर्श राम। दुजाराम वह आत्म-राम है जो हर किसी के भीतर है। तीजा राम जगत् पसाराअर्थात जो भी प्रकृती विश्व में व्यापक है। अर्थात् प्रकृति का अर्थ ,है ब्रह्माण्ड का भौतिक रूप। तो फिर चौथा राम कौन है? निराकार रूप ब्रह्म का निराकार रूप। यही पूजने  योग्य है। यह राम का मूल रूप है। इसे राम का दिव्य रूप भी कहा जाता है। जो शाश्वत, अपरिवर्तनशील, कालातीत और अद्वितीय है।

अभिगत ,अलख ,अनंत ,अनुपम हे l अभिगत का अर्थ है कालातीत, अलख का अर्थ है जिसे देखा न जा सके, अनंत का अर्थ है, जिसका न आदि है और न अंत, अनुपम का अर्थ है जिसकी किसी से तुलना नही की जा सकती।

यह राम सम्पूर्ण एवं संपूर्ण  है, जो सभी दोषों से मुक्त है। गतभेदा का अर्थ है भेदाभेद से बड़ा । यह वही राम हैं जिनकी पूजा हनुमान करते हैं। अर्थात् हनुमान सच्चे गुरु हैं जिन्होंने राम रूपी ब्रह्म को अपने हृदय में बसा लिया है।

तो हनुमान कौन हैं?

पवन सूत- पवन यानि प्राण अर्थात सांस, वह जीवन शक्ति जिससे सारा जीवन चलता है, जो हर जगह है, जो सर्वव्यापी है, जो पूरे ब्रह्मांड की सांस है, यही पवन सूत है।

शास्त्रों में पांच प्रकार के प्राण माने गए हैं। प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान। यही पांच मुख वाले हनुमान हैं |जिनका उल्लेख संत तुलसीदास ने हनुमान चालीसा में पांच बार जय जय कहकर किया है। यह जीवन शक्ति हमारे शरीर और तीनों लोको को शक्ति प्रदान करती है।

यह  अद्वितीय एवं अतुलनीय श्री राम का स्वरूप है, अर्थात ब्रह्म स्वरूप श्री राम का स्वरूप है। मानव जीवन का श्रम इस प्रकृति को समझना है।

प्रत्येक मनुष्य को ब्रह्म के स्वरूप को, श्री राम के स्वरूप को समझने के लिए तथा अंतिम मंजिल तक पहुंचने के लिए हनुमान जैसे सद्गुरु की आवश्यकता होती है। क्योंकि वह जय हनुमान हैं। जिसका जय अर्थ है जिसने स्वयं पर विजय प्राप्त कर ली है। दूसरों पर विजय प्राप्त होती है।

यह पवनसुत हमे क्या देता है? अर्थातयह प्राण हमें क्या देते है?

शक्ति/बल  का अर्थ है साहस, ज्ञान का अर्थ है बुद्धि।  वही बल जो  बल और ज्ञान जो मनुष्य प्राप्त कर लेता है, उसके क्लेश (अज्ञान, अहंकार, क्रोध, घृणा, उदासीनता) और दोष (वासना, क्रोध, मोह, ईर्ष्या, भ्रम और लोभ) नष्ट हो जाते हैं।  यही कष्ट और विकार आज के युग में या तो हमारे मालिक हैं, या हम उनके गुलाम बनकर काम कर रहे हैं।

लेकिन ब्रह्म के स्वरूप को जानने की यात्रा कैसे शुरू होती है – सुकरात के शब्दों में, the only true wisdom is to know nothing अर्थात”एकमात्र सच्चा ज्ञान यह जानना है कि आप कुछ भी नहीं जानते हैं।” अपने आप को बुद्धिहीन समझकर।

क्योंकि सारा श्रम विश्राम के लिये है।”

सारी यात्रा सब झुक कर अर्थात लीन होकर वहीं से शुरू होगी, यही सफलता है। और सफलता पाने के लिए विनम्र होना आवश्यक है।

तो, आप लीन होकर कौन सा काम शुरू करना चाहते हैं ?

मन के दर्पण को साफ़ करने के करना| क्योंकि हमारा मन मलीन हो गया है। इसीलिए हमे अपने जीवन में अपने अंदर के भगवान राम नहीं दिखते।

फिर उसके लिए कौन सा उपकरण का इस्तेमाल किया जाना चाहिए?

हनुमान जैसे संत के चरण कमलों की धूल लेकर उनके “सरोज चरण रज” कमल के फुल से चरणों की धूल लगाकर घिसने से मन की शुद्धी होती है|

अबमैं कैसे जानूं कि मेरा मन साफ़ हो गया या नहीं?

जब तक उस ब्रह्मरूपी राम की छाया मेरे मन में प्रकट न हो जाए। तब तक मुझे समझ  नहीं आयेगा , कि मेरा मन शुद्ध हो गया है।

यहाँ भगवान रामचन्द्र का कमल और छाया दोनों ही सांसारिक/प्राकृतिक हैं। क्योंकि निराकार अलख निरंजन तक पहुंचने का मेरा मार्ग साकार अर्थात मूर्त रूप में होना चाहिए। अतः यदि मेरे गुरु के चरण कमल अर्थात् कीचड़ जैसी आसक्ति मे रहकर अनासक्त  होंगे, तभी मैं प्रत्येक घट में राम को बैठा हुआ देख पाऊंगा। (आत्मराम)

इसके अलावा इस संसार की प्रकृति के हर पहलू में बैठे राम को पहचान पाऊंगा। केवल तभी beyond time and space अर्थात कालातीत higher order ब्रह्म स्वरूप श्री राम तक मे पहुच पाऊंगा|

मुख्य बात यह है कि एक बार जब मन की मलिनता दूर होने लगेंगी, तो मुझे अपनी सीमाओं का एहसास होगा। क्या पाना है और कितना ? इस के असीमितता का  अस्थायित्व का एहसास हो जायेगा। There is no enough is enough । यह मेरे मन का भाव नष्ट हो जायेगा|  धर्म , अर्थ, काम और मोक्ष में संतोष रहेगा। समृद्धि की भावना आएगी। मन में बसा अभावो का अभाव दूर होगा।

क्योंकि सद्गुरु का  पूजन करने से ,मनुष्य को लौकिक और अलौकिक प्रयासों का अर्थ पूरी तरह से समझ में आ जाएगा। लौकिक प्रयास का अर्थ है भौतिक जगत की किसी ऐसी चीज को पाने का प्रयास करना जो मैं चाहता हूँ, लेकिन मेरे पास नहीं है। और अलौकिक प्रयास, मेरे पास पहले से जो  है उसके प्रति जागरूक रहने का निरंतर प्रयास है। (जागरूकता)

अर्थात् भौतिक जगत में जो प्राप्त हो जाए वही अपर्याप्त है, तथा अलौकिक जगत में जो प्राप्त हो जाए वही पर्याप्त है, यह बात गुरु के चरणों में शरणागत हुए बिना समझ में नहीं आती, और इसलिए इस जगत में विनम्रता ही शाश्वत सत्य है।

अर्थात् भौतिक जगत में जो प्राप्त हो जाए वही अपर्याप्त है, तथा अलौकिक जगत में जो प्राप्त हो जाए वही पर्याप्त है, यह बात गुरु के चरणों में शरणागत हुए बिना समझ में नहीं आती, और इसलिए इस जगत में विनम्रता ही शाश्वत सत्य है।

अपनी सीमाओं के बारे में स्पष्टता आने पर ही मनुष्य साहस, बहादुरी, वीरता, धैर्य, बुद्धिमत्ता, नैतिकता, पराक्रम और विद्वता से संपन्न होता है।

यह मेरे भीतर की प्राण शक्ति का कार्य है, जिसके अधिकारी जय हनुमान है। जिसने इस ब्रह्मरूपी जीवन को अपने भीतर समाहित कर लिया है, वह न केवल प्रकाशपुंज बन गये है, बल्कि उन्होने तीनों लोकों को भी प्रकाशित कर दिया है।

देवताओं के लोक में इंद्र की ध्वजा पर सवार होकर, मानव लोक में दशरथ पुत्र राम की सहायता करके तथा पाताल लोक में राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करके।

यदि सात चक्रों से युक्त मानव शरीर को उसके सामने रखा जाए तो मूलाधार, स्वादी ष्ठान और मणिपुर चक्र रावण का प्रतिनिधित्व करते हैं। और शीर्ष तीन, विशुद्ध, आज्ञाचक्र और सहस्त्रार, राम हैं। हृदय यानि अनाहत चक्र यानि हनुमान अर्थात प्राण।

रावण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए सद्गुरु हनुमान की आवश्यकता है, और राम को समझने के लिए भी सद्गुरु हनुमान की आवश्यकता है। सद्गुरु हनुमान, हृदय में अनाहत चक्र में निवास करने वाले प्राण स्वरूप, प्रत्येक व्यक्ति हृदय मे  अनाहत चक्र मे वास करने वाले प्राण हनुमान प्रत्येक व्यक्ती का auto rtythm  हैं। जो हमें highest auto rhythm से जोडने के लिए तत्पर है | इस अर्थ में हनुमान राम के दूत हैं।

हनुमान अंजनी के पुत्र हैं। निरंजन का अर्थ है जिसमें कोई दाग न हो और अंजन का अर्थ है जिसमें दाग हो। प्रकृति में दाग है। लेकिन प्रकृति भी भौतिक है। हनुमान सदैव हमारे सामने भौतिक रूप में रहेंगे, गुणों से बंधे रहेंगे। (गुण से गुणातीत की यात्रा करने और करने के लिए।) उन्होने प्राण  पर विजय प्राप्त कर लिया होगा, तभी जीवन में संतुलन होगा। हनुमान जब चाहें जीवन प्रदान कर सकते हैं, इसीलिए वे महावीर हैं।

महावीर का अर्थ है मन और आत्मा की रक्षा करने वाला।  महावीर पूजनीय हैं।

सद्गुरु हनुमान किसका कार्य करते हैं? किसको फल देते है?

तो, आज जमाने की तरह, पवनसुतने भी फिल्टर लगाये हैं। जो लोग राम का काम अर्थात् निष्काम कर्म करते हैं। हनुमान भी उनमें रुचि रखते हैं। जो लोग सत्संग में रुचि रखते हैं।

किसका सत्संग?

राम, लक्ष्मण और सीता का सत्संग। सीता का अर्थ है समानता, लक्ष्मण का अर्थ है मन का एकाग्र होना और राम ब्रह्म के प्रतीक हैं।

“वह जो समभाव से अपने मन को एक लक्ष्य पर स्थिर रखता है और ब्रह्म की ओर बढ़ता है। वह न केवल अपना कार्य करता है, उसके कार्य करने के लिए सद्गुरु हनुमान आतुर  रहते है|

आज के कलियुग मे प्रत्येक व्यक्ति का मन मेघना जैसी राक्षसी प्रवृत्ती के प्रहार से मूर्ख हो गया है|इसलिये ब्रह्म को जानने के लिए इस जगत मे आये हुए हम हमारे eternal source  से disconnect हो गये है|

इसलिए मुझे नहीं पता कि राम मुझसे मिलने के लिए मुझसे अधिक उत्सुक है या नहीं। हृदय में स्थित आत्मा ही इसे जानने का माध्यम है।

I never know beloved too desires us –Rumi

एक बार संत तुलसीदास चित्रकूट नदी के तट पर बैठकर चंदन की लाकडी से चंदन तैयार कर रहे थे और भगवान राम को याद करते हुए उनके आखों से आसू बह रहे थे | तभी भगवान राम एक छोटे बालक के रूप में उनके सामने प्रकट होते हैं। और वे चंदन मांगते हैं। तुलसीदास भगवान राम की याद से बहुत व्याकुल और चिंतित हैं। वे बच्चे से किसी और से चंदन लेने को कहते हैं। लेकिन भगवान रूपी बालक उनसे चंदन लेने की जिद करते है। तब तुलसीदासजी उनसे विनती करते हैं कि उन्हें परेशान न किया जाए।

बालक कहेता है -क्यों रो रहे हो? बस मुझे बताओ। कई बार मना करने के बाद तुलसीदास अंत में कहते हैं कि उन्हें अपने भगवान की बहुत याद आती है।

बालरूपी राम कहते हैं कि यदि कोई भक्त उनसे मिलने नहीं आता, जबकि वह उन्हें इतना याद करता है और इतना रोता है, तो वह अवश्य ही बहुत कठोर हृदय वाला होगा।

संत तुलसीदास को यह बात  पसंद नहीं आती जब बच्चे उनके  भगवान को ऐसा कहते हैं। वे कहते हैं कि ऐसा कुछ नहीं है, मेरा भगवान बड़ा कोमल हृदय वाला है।

तभी वहां एक तोता आता है और संत तुलसीदास से कहता है कि जिस भगवान के लिए आप रो रहे हैं, वह वास्तव में आपके सामने खड़े हैं।

कहने का तात्पर्य यह है कि यदि स्वयं भगवान आपके सामने भी खड़े हों तो  वे भगवान ही हैं,यह बता ने के लिये गुरू का होना अती आवश्यक। जो इस बारे में जागरूक कर सके।

यह पवन/वायु धागा ही सच्चा गुरु है।

ब्रह्म रूपी राम ने इस सद्गुरु रूपी हनुमान को गले लगाया है। क्योंकि हनुमान में सभी को पुनर्जीवित करने की क्षमता है।

हम केवल उन्हीं को गले लगाते हैं जिनसे हम प्यार करते हैं। ऐसा नहीं है, हम उन्हें भी गले लगाते हैं जिन्हें हम अपने जैसा मानते हैं। हम उस व्यक्ति को गले लगाते हैं जिसे हम सब कुछ देना चाहते है, सिर्फ शब्दों या आँखों से नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व से। अपने रोम रोम से देना चाहते है|इसी चाहत से ब्रह्मरूपी भगवान राम ने सद्गुरु हनुमान को गले से लगाया है|

मृत्यु के देवता यम भी हम सभी से प्रेम करते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि जब तक हम सद्गुरु हनुमान के हाथों में नहीं पड़ेंगे, तब तक हम कई बार उनके हाथों में पड़ेंगे। एक बार हम हनुमान के हाथों में पड़ गए तो वह हमें तब तक नहीं छोड़ेंगे जब तक हम पार नही लग जाते|

Glory never be explained it can only be experienced.

कहने को तो और भी बहुत कुछ है। लेकिन मैं जानती हूं कि मैं ज्ञान के इस विशाल सागर से केवल एक कण ही निकाल पायी हूं। ||श्री माऊली के चरणो मे समर्पित||

अश्विनी गावंडे

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