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पौराणिक कथाओं में सुर और असुर दो शब्द बार-बार आते हैं। सुर और असुर भौतिक शब्द नहीं बल्कि भावनात्मक शब्द हैं। जो लोग सृष्टिकर्ता की शाश्वत, अनंत शक्ति को स्वीकार नहीं करते।  उन्हे असुर कहा जाता था | जो स्वीकार करते है , उनको को  सुर कहा जाता था।

इसी असुर श्रेणी मे एक हिरण्य कश्यप नामक राजा था| इनकी पुराणों में होलिका दहन की एक कथा है।  जिसे अधिकतर लोग जानते हैं।  जो अपनी तपस्या के फलस्वरूप भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगने लगा।  जब ब्रह्मा ने इस अमरता को अस्वीकार कर दिया।  उस समय वह उनसे वरदान प्राप्त करने में सफल हो गया ,कि मेरी मृत्यु ऐसे समय हो जब न दिन हो और न ही रात।  मेरी मृत्यु न तो पृथ्वी पर होगी, न ही स्वर्ग में।  न घर में, न दरवाजे पर।  न तो राक्षस और न ही मनुष्य मुझे मार सकते हैं।  न ही कोई जीवित प्राणी.  न देवी, न देवता ।

कुल मिलाकर, उसे ऐसा लग रहा था कि मेरे मरने का समय कभी नहीं आएगा।  इसके बाद हिरण्यकश्यप ने वास्तविक सृष्टिकर्ता से प्राप्त शक्तियों का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया।

सम्पूर्ण राज्य को भगवान विष्णु नाम लेने और उनकी पूजा करने से मना कर दिया गया तथा केवल स्वयं की, अर्थात् राजा की पूजा करने का आदेश दिया गया।

हालाँकि, यह भाग्य का एक बड़ा विरोधाभास था कि ऐसे राजा के यहाँ एक कट्टर विष्णु भक्त पुत्र पैदा हुआ। वह राजा, जिसने पूरे राज्य को देवी-देवताओं की पूजा करने से रोक दिया था, अपने बेटे को भगवान विष्णु की पूजा करने और उनके प्रति समर्पित होने से नहीं रोक सका।

उसका पुत्र प्रह्लाद बहुत धार्मिक था। हिरण्यकश्यप कहता था कि जिस विष्णु का तुम आह्वान करते हो, नाम जपते हो।  वह तुम्हें बचाने कैसे आता है?  मैं यही देखता हूं, इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने के लिए तरह-तरह के प्रयास शुरू कर दिए।
मेरा बेटा हमारे राज्य में बनाए गए कानूनों का पालन नहीं करता। इसलिए मुझे ऐसा बेटा नहीं चाहिए।  इसलिए उसने लड़के को मारने के कई प्रयास किए, लेकिन अंततः उसे अपनी बहन और उसकी शॉल की याद आ गई।

बहन होलिका के पास एक शॉल थी| जिसे पहनने पर उसे पहनने वाला व्यक्ति जल नहीं सकता था।  इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मारने की जिम्मेदारी होलिका को सौंपी।

उसे प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठना था| जहां प्रह्लाद आग मे जलकर मर जाएगा और होलिका शाल के कारण  बिना जले बाहर आ जाएगी।
सम्पूर्ण रूपरेखा इसी अनुमान के साथ तैयार की गई थी। हालाँकि, हुआ इसके ठीक विपरीत| होलिका के शरीर पर पड़ा शॉल भक्त प्रह्लाद पर गिर गया और होलिका जलकर मर गई।

बाद में राजा हिरण्य कश्यप के वध की कथा और वह स्थान जहां वह वध हुआ, सर्वविदित है।

होली फाल्गुन पूर्णिमा को मनाया जाने वाला त्यौहार है।  इस समय ब्रह्मांड में सभी ग्रह और नक्षत्र अलग-अलग तरीके से स्थित होते हैं।  वह स्थिति परिवर्तनकारी (Transformatory Energy )ऊर्जा पैदा करती है।  जैसा कि हम सभी जानते हैं, भौगोलिक स्थिति का उपयोग मानव उत्थान के लिए किस प्रकार किया जा सकता है?  भारतीय संस्कृति में इस पर बहुत अध्ययन हुआ है। सूर्य को आत्मा का प्रतीक माना गया है और चंद्रमा को मन का प्रतीक माना गया है।  फाल्गुन पूर्णिमा के दिन चंद्रमा कन्या राशि के फाल्गुनी नक्षत्र में होता है, जबकि सूर्य उससे 180 डिग्री आगे मीन राशि के भद्रावती नक्षत्र में होता है।  चंद्रमा और सूर्य की इस स्थिति के कारण पूरे आकाश में परिवर्तन ऊर्जा का एक क्षेत्र निर्मित होता है।

इस दिन का उपयोग खुद को विनाशकारी व्यवहार से मुक्त करने के लिए किया जाता है, जैसे कि हमारी अपनी आदतें, हमारी अपनी मान्यताएँ, हमारे अपने आराम(comfort zone) क्षेत्र और हमारे जीने के तरीके जो हमारा उत्थान नहीं कर रहे हैं, बल्कि हमारे खिलाफ काम कर रहे हैं। होली ऐसी चीजों से छुटकारा पाने का दिन है होली|

ऊपर वर्णित होली का दहन की कहानी प्रतीकात्मक है।  चाहे हम कितने भी साधक क्यों न हों, चाहे दुनिया हमें कितना भी सृष्टिकर्ता का सेवक और उपासक क्यों न समझे, हम जानते हैं कि हम क्या हैं ? लेकिन अगर हमारे अंदर का अहंकार (खुद को साबित करने या दिखाने की प्रवृत्ति) खत्म नहीं हुआ है| बिना विनम्र हुए और अपनी साधना के सत्य के प्रति समर्पित हुए|

हम अपनी साधना के फल का इस्तेमाल सिर्फ स्वार्थ के लिए ही कर सकते हैं, जैसा कि हिरण्यकश्यप के आचरण से साबित होता है।

आज, हममें से प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहा है।  होली यह सोचने का दिन है कि क्या हिरण्यकश्यप जैसी शक्ति प्राप्त करना है ?या अमरता प्राप्त करनी है?

यदि आध्यात्मिक साधना से प्राप्त आशीर्वाद गलत हाथों में पड़ जाए तो क्या होगा?  यह सर्वनाश तक कैसे जा सकता है?  होली, होलिका की कहानी के माध्यम से इसे समझने का यह दिन है।

होली और रंगों का त्योहार रिश्तों को बेहतर बनाने का त्योहार है।

एक अर्थ में सत्य क्या है?  मेरा उससे क्या सम्बन्ध है? जैसा कि प्रह्लाद ने तय किया।  भले ही हिरण्यकश्यप मेरे पिता है, फिर भी परम सत्य मेरे लिए महत्वपूर्ण है।  परम सत्य ही मेरी निष्ठा है, सृष्टिकर्ता के प्रति मेरी भक्ति है।

आज हम स्वयं अपना लिटमस परीक्षण कर सकते हैं|

मेरी भक्ति की प्रकृति क्या है?  जबकि सोशल मीडिया या सामाजिक कार्यक्रमों का आधा हिस्सा भक्तिमय हो चुका है। प्रकृति/सृष्टिकर्ता के साथ मेरा क्या संबंध है?  मेरे लिए क्या महत्वपूर्ण है?  होली ऐसे निर्णय लेने का दिन है।

तीसरी बात जो ध्यान देने योग्य है| वह है होलिका द्वारा ओढ़ा गया शॉल।  जो हवा में उड़कर प्रह्लाद की ओर आती है, और उसे बचा लेती है।

इससे जो अर्थ निकलता है वह एक ही है।  बुरी प्रवृत्ति अच्छी प्रवृत्ति को मारने की चाहे जितनी भी कोशिश करे, एक बार जब अच्छी चीजें बुरी प्रवृत्ति पर प्रभाव डालती हैं, तो बुरी प्रवृत्ति बुरी नहीं रह जाती।  यहाँ बुराई का अर्थ असत्य है।  यह तथ्य कि शॉल उड़कर प्रह्लाद पर गिर जाती है |इसका अर्थ यह है कि जिस हवा ने शॉल को नीचे गिराया, वह विचार वायु थी।  जो अच्छे से प्रभावित हुई और, उसके अंदर की बुरी प्रवृत्ति लुप्त हो गई।  इस तरह से होलिका ने प्रह्लाद को बचाया।

आज हम जिस युग में रह रहे हैं।  इसमें चतुराई को बहुत महत्व दिया गया है। लेकिन होलिका की यह कहानी यह भी साबित करती है, कि चतुराई हमेशा सच नहीं होती।  इसलिए, इसे नष्ट कर दिया जाएगा| जो सत्य है। जो मौलिक है।  वह शाश्वत है।  और वह है मासूमियत, निष्पाप होना| यही बात कायम रहेगी, क्योंकि यही सत्य है।

सबसे महत्वपूर्ण और सीखने योग्य बात यह है कि जिससे सब कुछ प्राप्त होता है, उसी ने शक्ति प्रदान की है।

जिसने ऊर्जा प्रदान की है, वही ऊर्जा उसी के विरुद्ध प्रयोग करने से अधिक बुरा क्या हो सकता है?

हर किसी में अच्छी- बुरी  आदतें होती हैं। क्या अपने अंदर की ऊन आदतो को आप जानना और बदलना चाहते हैं?  यह एक ऐसा प्रश्न है जो हर किसी को स्वयं से पूछना चाहिए।  केवल एक ही काम करना है | मुझमे बुरा अथवा गलत क्या है ?  इस की खोज|

इस के आगे और अधिक खोज करने के बजाय यह भी हो सकता है की, मै ये देखू की

मेरे जीवन में सार्थकता कैसे आयेगी? उस पर ध्यान केंद्रित करने से मेरे भीतर की अर्थहीनता स्वतः ही दूर हो जाएगी।
यह देखने का ज्ञान अवश्य अर्जित किया जाना चाहिए।
मनुष्य के पास ऐसी चीजों को आत्मसात करने के प्रचुर अवसर हैं और ब्रह्मांड में ऐसी परिस्थितियां उपलब्ध हैं, बस उन्हें प्रबुद्ध दृष्टि से देखने की जरूरत है।

होली और रंग पंचमी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।  जब मेरे अंदर का असत्व या अवांछित तत्व गायब हो जाता है।तब  मुझ पर जो मलीनता जमा हो गई है, वह निकल जाती है। फिर मेरे लिए क्या बचता है ?

मेरे पास बचते है जीवन के मूल सिद्धांत | अर्थात् पवित्रता, प्रेम, आनन्द और ज्ञान।

जब होली की अग्नि में अनावश्यक अवांछित तत्त्व जल जाते है| तब बजते है पवित्रता प्रेम आनंद और ज्ञान |तभी ही समानता के स्तर पर इन मूल सिद्धांतों का रंगीन उत्सव शुरू होता है।

होली से जुड़ी एक अन्य किंवदंती भगवान कृष्ण की रासलीला से है, जो सभी को प्रिय है।  ऐसा कहा जाता है कि रासलीला के दौरान सभी गोपियां प्रकृति बन जाती हैं और कृष्ण अकेले पुरुष रूप में वहां रहते हैं।  सभी गोपियों की प्रेममयी भक्ति के माध्यम से वे आत्म-साक्षात्कार की स्थिति प्राप्त करते हैं।  और वे परमात्मा के साथ एकाकार हो जाते हैं।

जब भगवान शिव को यह एहसास होता है, तो वे भी रासलीला देखने के मोह छोड नही पाते।  लेकिन नियम होता है कि,अगर कोई रासलीला में भाग लेना चाहता है तो उसे गोपीयो का रूप धारण करना पडता है|तो भगवान शिव को गोपी का रूप धारण करना होगा।

इसका प्रतीकात्मक अर्थ यह है कि गोपियों की कृष्ण के प्रति पूर्ण भक्ति है, चाहे वह भक्ति के रूप में हो या प्रेम के रूप में।  और यही आत्मज्ञान का मार्ग है।

इसका अर्थ यह है कि मानव जीवन में केवल ज्ञान से आत्म-साक्षात्कार नहीं हो सकता। आत्म-साक्षात्कार केवल समर्पण से ही प्राप्त किया जा सकता है।  और समर्पण के लिए स्त्री का हृदय होना आवश्यक है।  जब भगवान शिव भी समर्पण के बिना आत्म-साक्षात्कार के योग्य नहीं थे, तो हमारी आपकी क्या कहानी |

भगवान कृष्ण अपने मामा कंस का वध करने के लिए गोकुल छोड़कर वृंदावन जाने लगे तब राधा भगवान कृष्ण से कहा।   कान्हा यदी ने मुझसे विवाह किया होता, तो मैं आपके साथ आ सकती थी।  पीछे मूड कर जब कृष्ण राधा की ओर देखते हैं।  तभी राधा को  राधा ही दिखती है।

क्योंकि ज्ञान ही प्रेम है और प्रेम ही ज्ञान है।
यही मानव जीवन का परम सत्य है।

!!श्री माऊली के चरणों में अर्पण!!
अश्विनी गावंडे

12 Responses

  1. Amazingly explained. It gives us an opportunity to think differently. It’s really eye opening conclusion that “Samarpan hi best marg hai”.

  2. It’s amazingly explained. Very nice and eye opening. It’s an opportunity for us to think differently. Thank you didi for sharing this valuable information.

  3. Abi tak jo jaana wo bas gayan thaa but abi lag raha hai Prem or Samparpan ke bina sab Adhuraa hai…thanku For sharing nd without love nd without Samparpan im incomplete 🙏 thanku Sir for your wisdom sharing sessions 🙏

  4. खुप अर्थपूर्ण माहिती छान

  5. खूप सुंदर लिखाण आणि महत्त्वपूर्ण माहिती.शालेय कामकाज सांभाळून आपण एवढे लिखाण करता खरंच खूप खूप कौतुकास्पद आहे. ज्ञानाचा भरपूर संग्रह आपणा कडे आहे.तो आम्हाला सतत मिळत राहो हीच अपेक्षा.

  6. जीवनात सार्थकता आणण्यासाठी लक्ष केंद्रित करून योग्य ज्ञान मिळवल्यानंतर अर्थहीन गोष्टी आपोआपच निघून जातात . प्रकृतीही तुम्हाला तशी परिस्थिती उपलब्ध करून देते.

    ही वाक्ये खूप प्रेरणा देणारी आहेत.खूप छान👌👌

  7. खुप सुंदर पद्धतीने सांगितले।अतिशय अर्थपूर्ण माहिती देनारा लेख

  8. पवित्रता ,ज्ञान , प्रेम , आनंद आणि समर्पण! एकत्वाचा बोध, स्वीकार,एका तरल उंचीवर जीवनाला नेते. तेथे जे गवसते ते म्हणजे फक्त जगण्यापलीकडले जीवन! हाच तो रंगोत्सव आणि कायापालट! किती छान उदाहरण देऊन ,सहज सोपं करून जीवनाचे तत्वज्ञान सांगितलं मॅडम. मनापासून धन्यवाद.

  9. ज्ञान मिळाल्यानंतर माणसाचा जो कायापालट होतो तो त्याला जगण्याची योग्य दिशा देते आपल्या लिखाणातून वेळोवेळी अतिशय महत्त्वपूर्ण माहिती मिळत राहते छान लिखाण

  10. जीवनाचे तत्त्वज्ञान खूप सरळ सोप्या भाषेत मांडले.खूप छान लेख .

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